शनिवार, 6 सितंबर 2014

कुछ अपनी...कुछ उसकी


अपनी मनमानी,
उसकी नादानी,
लरज जाती बेदम,
रिश्तों की तानी...

अपनी तुनकमिजाजी,
उसकी बेपरवाही,
तोड़ती सीमाएं,
लफ्ज़ों की आवाजाही...

अपनी चुप्पी,
उसकी ख़ामोशी,
डूबते साए,
अपनी-अपनी आजादी...

अपनी खिसियाहट,
उसकी मुस्कुराहट,
गुत्थम-गुत्था साँसें,
भींगते पाजी...


-नवनीत नीरव-

1 टिप्पणी:

Anusia ने कहा…

Bahut acha kavita hai.