कुछ अपनी...कुछ उसकी
अपनी मनमानी,
उसकी नादानी,
लरज जाती बेदम,
रिश्तों की तानी...
अपनी तुनकमिजाजी,
उसकी बेपरवाही,
तोड़ती सीमाएं,
लफ्ज़ों की आवाजाही...
अपनी चुप्पी,
उसकी ख़ामोशी,
डूबते साए,
अपनी-अपनी आजादी...
अपनी खिसियाहट,
उसकी मुस्कुराहट,
गुत्थम-गुत्था साँसें,
भींगते पाजी...
-नवनीत नीरव-
1 टिप्पणी:
Bahut acha kavita hai.
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