शनिवार, 25 मई 2013

पथरीले विचार


एक लम्हा था हँसता खिलखिलाता,
सहसा शोर में बदल गया,
बेतरतीब हो गए मेरे नाजुक ख्याल,
शर्मिंदगी ने सिर नीचा किया.
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लोग कहते हैं दूरी जरूरी है,
तुम्हारे सबके दरम्यान,
एक ख्याल था अपनापन-सा उस वक्त,
अब सन्नाटा है अट्टहास करता हुआ.
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वो रात कैसे गुजरी,
तुम्हें क्या बताऊँ,
अँधेरा था रिक्त,
नींद अन्जान नदी के पार,
करवट बदलता रहा था मैं,
दोनों पाटों के बीच,
हथेलियाँ ढीली पड़ रही थीं,
और तुम्हारी यादें छिटक कर दूर.
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अपने गाँव से आये पडोसी को,
अपना कहने में घबराता हूँ,
वो तो खुद आते पर संग लाते,
पथरीले विचार अपने भूत, वर्तमान.

-नवनीत नीरव
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