सोमवार, 2 अप्रैल 2012

पिया तुम न आए


COPYRIGHT- MEERA BAKSHI
लौट चले फागुन के सब सौगात,
पिया तुम न आए,
पेड़ों से झरने लगे पीले-सब्ज पात,
पिया तुम न आए.

बाट देखती जिस पनघट पर,
रसरी उसकी छोटी हुई जात,
बड़े ताल की जरूरत ना रही,
पानी सीढ़ियों संग उतर आत,
धूप में जैसे मोरी उमरिया ढलती जाए,
पिया तुम न आए.

सुबह-सुबह घर आँगन बुहारूँ,
मैया तुलसी से तुम्हरी कुशलता चाहूँ,
रातों में चंदा संग चलती चली जाऊं.
जुगनू सी भई जोगिन रैन बिताऊं,
तुम क्या जानो रातों में विरह कैसे सताये?
पिया तुम न आए.

-नवनीत नीरव-

2 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है नवनीत जी।बधाई।

Mithilesh dubey ने कहा…

लाजवाब लिखा है भाई आपने .