शनिवार, 16 मई 2009

पुरानी प्रेमिका

अक्सर देखा है मैंने,
पेड़ से पत्तों को अलग होते हुए ,
हर साल पतझड़ में

हर
बार वो टूटते हैं,
फिर नए पत्ते जुड़ते हैं,
यह सिलसिला हर साल,
दुहराया जाता है
पर उन पत्तों का क्या?
जो टूट कर बिखर जाते हैं,
जैसे वास्ता ही नहीं रहा हो ,
कभी एक दूसरे से

आत्मीय रिश्ते,
जब टूटते हैं ,
तो वे अक्सर ही,
संवादहीन हो जाते हैं
मुस्कुराना एक दूसरे के लिए,
जैसे कठिन हो जाता है,
और नजरें छिपते हुए,
गुजरना चाहती हैं

एक अर्सा बीत गया,
साथ छूटे अपनी प्रेमिका का,
पर अब भी जब वो,
मेरे सामने आती है,
एक नजर देखती है मुझे,
धीमे से मुस्कुराती है
और फिर
हौले
से गुजर जाती है

-नवनीत नीरव-

4 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

prabhavshali rachna hai ji

Meri Kalam - Meri Abhivyakti

प्रिया ने कहा…

Riston ki achchi abhivyakti

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

पर अब भी जब वो
मेरे सामने आती है
एक नज़र देखती है मुझे
धीमें से मुस्कुराती है
और फिर
हौले से गुज़र जाती है ....

बहुत खूब....बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.....!!

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

navneet, mere blog par visit ke liye aur comment ke liye dhanyawaad, aapki kavita achchi hai. rishtey hote hi lahron ki tarah hain , kabhi lahren mil jati hain kabhi alag ho jaati hain.